गेसुपुर की गलियाँ आज सूनी पड़ी हैं.टॉमी और जैक्सन के घर पर आज सभी पशुओं का चूल्ही न्योता है.आज दोनों श्वानों का पाँचवा जन्मदिन है.कल से दोनों पहली बार विद्यालय जाना आरम्भ करेंगे.
पूरा आँगन मंगलगीतों से गुंजयमान हो रहा है.सियारानंद महाराज अत्याधिक आनंद से परिपूर्ण होकर दोनों को चिरायु और ख़ुश रहने का आशीर्वाद देने की तैयारी कर रहे हैं.उनकी ये प्रसन्नता उनके भरे पूरे झोले से केले,संतरे और बतासों के रूप में लगातार बाहर गिर रही है.महाराज कभी अपने झोले तो कभी अपनी धोती को समेटते हुए रवानगी लेने के लिए दरवाज़ा की तरफ़ बढ़े ही थे कि अचानक उनकी दृष्टि एक जगह ठिठक गयी.एक तरफ़ दीवार से सटी हुईं मेज़ों पर मौजूद बर्तनों में भाँति भाँति प्रकार के व्यंजन सजे हुए हैं.जाते जाते महाराज जी ने एक श्वान से आग्रह करके कुछ मिष्ठान अपने पहले से ही भरे झोले में डलवा लिए.
पंडित जी के प्रस्थान पश्चात् सभी ने तख़्तों पर यूँ आक्रमण किया जैसे अमृत मंथन से निकला द्रव्य उन तश्तरियों में ही रखा हुआ हो और उसे ना मिलने की दशा में उनकी आने वाली पीढ़ियाँ इस संसार के दर्शन से वंचित रह जाएँगी.अपनी थाली को व्यंजनों से भरकर एक श्वान ने ख़ाली पड़ी कुर्सी पर क़ब्ज़ा जमा लिया.चूँकि कुछ प्राणियों को कुर्सी नहीं मिल पायी थी अतः श्वान के चेहरे पर सफ़लता प्राप्त करने के भावों ,जो एक सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकते, का उभरना आने वाली कटुता की शुरुआत मात्र थी .जिनको कुर्सी नहीं मिल पायी थी उन्होंने अपने ग़म को स्वादिष्ट भोजन से साझा करना ही उचित समझा.
“ऐसी सरकार का होना भी क्या होना है.”,पूरी के एक ग्रास को सब्ज़ी में डुबाते हुए वह श्वान बड़बड़ाने लगा.
“अब क्या कर दिया सरकार ने जो आप अकस्मात् इतना कुपित हो रहे हैं?”,एक बंदर ने श्वान को देखते हुए पूछा.
“अजी हाँ!आप तो ऐसे भोले बन रहे हैं जैसे ठंडा दूध भी फूंक कर पीते हैं.आपको पता नहीं कि पेट्रोल और गैस के दाम आसमान छू रहे हैं.टमाटर खाने के लिए तो ऐसे ही उत्सवों का मुख ताकना पड़ता है और पनीर तो अब सुनार की तिज़ोरी में ही मिलता है.“,वह तो ऐसा फूटा मानो पूरा भाषण तैयार करके लाया था.
“लेकिन….”
“दुश्मन मोहल्ले के बिलौटे हमारी बिल्लियों को छेड़कर भाग जाते हैं.उन बिलोटों से आँख छुपाने की नहीं अपितु लाल आँखें दिखाने की आवश्यकता है.”,बंदर की बात को बीच में ही काटते हुए श्वान बोला.
“किंतु….”
“हमारे मोहल्ले को महंगाई और भ्रष्टाचार रूपी दीमक ने अंदर तक खोखला कर दिया है.“,श्वान की आँखों में अग्नि धधकने लगी.
“परंतु….”
“किंतु परंतु आप जैसे पशुओं को ही शोभा देता है जो अपने समाज की रक्षा करने के लिए असमर्थ हैं.और क्या कहें,इस सरकार ने 70 साल से हमारे बीच में रहने वाले इन भेड़ियों का ही तुष्टिकरण किया है.हम श्वानों की तो इस सरकार ने कभी सुध ही नहीं ली.जब इन भेड़ियों ने 70 साल पहले अपना अलग मोहल्ला बना लिया है तो अब ये यहाँ क्या कर रहे हैं.इनको भी उसी मोहल्ले में भेज देना चाहिए.”,अबकी बार बंदर पर निजी हमला हुआ.
”आप अपने और भेड़ियों के मसलों में हम बंदरों को क्यूँ खींच रहे हैं?”,बंदर ने भी उत्तेजित होते हुए आपत्ति दर्ज कराई.
”वे भेड़िये नहीं अपितु आप असली अल्पसंख्यक हैं इस मोहल्ले के.ये उत्तेजना आप यहाँ बचे हुए भेड़ियों को इस मोहल्ले से बाहर निकालने के लिए इस्तेमाल कीजिए.गर्मी कम दिखाइए वरना मेरा दामाद भी सरकारी बुलडोज़र चलाता है और हमें सब पता है की आपकी दुकान सड़क से दो गज़ आगे तक बढ़ी हुई है. समझे या गर्मी शांत करवाऊँ.”,श्वान ने अपनी थाली बग़ल में रखते हुए बंदर को ललकारा. अचानक हुई इस घटना ने पूरे कमरे को एक अजीब से सन्नाटे की गिरफ़्त में ले लिया.
दोनों बाल श्वान भी आश्चर्य से भरे नेत्रों से श्वान की तनी हुई भृकुटी को देखने लगे.मतभेद को मनभेद में परिवर्तित होते हुए वे प्रथम बार देख रहे थे.उनके लिए ये बेहद अलग और नया अनुभव था.
“परंतु अब सब ठीक हो जाएगा.सुप्रीम कमांडर का अवतरण सुनिश्चित है.हम सबका अखंड श्वान मोहल्ला बनाने का स्वप्न अब दूर की कोड़ी नहीं है.”,श्वान आत्ममुग्धता से आलिंगनबद्ध होते हुए बुदबुदाया.
एक तो बंदर को कुर्सी नहीं मिली थी,दूसरा उत्तेजना में श्वान ने सबके समक्ष उसको तिरस्कृत कर दिया था.
बंदर ने आव देखा ना ताव और श्वान पर धावा बोल दिया.कुछ ही क्षण में दोनों अपने मसूड़े और दाँत दिखाते हुए पैंतरे बदलने लगे.गुर्राहट से पूरा माहौल गरमा गया.मंगल गीतों का स्वर मद्धम पड़ने लगा था और मनहूसियत की परछाईं ने आपस में भिड़े हुए श्वान और बंदर के मध्य से गुजरते हुए पूरे घर को धीरे धीरे अपने आँचल में समेटना शुरू कर दिया था.
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